यूपी के 12 सीटों पर भाजपा, सपा और कांग्रेस ने ऐसे खेल किया कि सबकी भविष्यवाणियां फेल हो गईं। वोटरों की जुगलबंदी राजनीतिक विश्लेषकों पर भारी पड़ गईं।
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लखनऊ। यूपी के 12 सीटों पर भाजपा, सपा और कांग्रेस ने ऐसे खेल किया कि सबकी भविष्यवाणियां फेल हो गईं। वोटरों की जुगलबंदी राजनीतिक विश्लेषकों पर भारी पड़ गईं। यूपी के 12 सीटों पर एक-एक वोटों के लिए मारामारी देखने को मिली। मतगणना स्थलों पर कभी जीत का शोर तो कभी पीछे होने की मायुशी छा जाती।
पिछले चुनाव में लाखों वोटों से जीते प्रत्याशी इस बार एक-एक वोट के लिए नजर गड़ाए दिखाई दिए। पिछली बार भाजपा हमीरपुर सीट से ढाई लाख वोटों से जीत दर्ज की थी इस बार 2600 वोटों से हार गई।
कांटे के संघर्ष का प्रमुख कारण
अलीगढ़ सीट- यहां से पूर्व सांसद जाट थे। इसलिए यहां पर जाटों का गोलबंदी देखने को मिली। यहां से सपा 15 हजार से अधिक वोटों से जीती।
अमरोहा- इस सीट पर पिछले चुनाव में दानिश अली बसपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। इस बार वो कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे। यहां 38 फीसदी वोटर्स मुस्लिम हैं। इसके अलावा बसपा के वोटों में सेंध लगने से भाजपा की राह कठिन हो गई। यहां पर कांग्रेस 28 हजार से अधिक वोटों से जीती।
आंवला लोकसभा सीट- इस सीट से सपा ने हमेशा मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दिया। इस बार नीरज मौर्य को टिकट दिया। यही कारण है कि मौर्य वोटर्स भी शिफ्ट हो गए। मुस्लिम-यादव फैक्टर और धर्मेंद्र कश्यप से ठाकुरों की नाराजगी भी बड़ी वजह रही। विवादित बयान ने भी बड़ी भूमिका निभाई। यहां भाजपा 15 हजार से अधिक वोटों से जीती।
बदायूं- यहां से सपा और भाजपा दोनों उम्मीदवारों का पहला चुनाव था। सपा का मजबूत आधार वोट। शिवपाल सिंह ने बेटे के लिए पूरी ताकत झोंक दी। विरोधियों को एकजुट करने में कामयाब रहे। भाजपा ने 34 हजार से अधिक सीटों पर जीती।
बांसगांव- इस सीट पर सीएम योगी का खासा प्रभाव है। बसपा के रामसमुझ ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया। सदल प्रसाद पिछला चुनाव बसपा से लड़े थे। इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में है। इस लिए सदल प्रसाद ने कांग्रेस के परंपरागत वोटों के साथ बसपा वोटरों में भी सेंध लगाई। कांग्रेस तीन हजार से अधिक वोटों से जीती।
धौरहरा- इस सीट पर जातीय लामबंदी का असर दिखा। यहां पर ब्राह्मण, ठाकुर, यादव और मुस्लिमों ने एकतरफा वोट किया। रेखा वर्मा का सवर्ण विरोधी बयान और महोली विधानसभा में जूता कांड का भी असर देखने को मिला। बसपा प्रत्याशी ने भी खेल बिगाड़, जो पहले भाजपा में थे। भाजपा चार हजार से अधिक वोटों से जीती।
फर्रुखाबाद- यहां से शाक्य वोटर जो भाजपा का परंपरागत वोटर था। बीजेपी प्रत्याशी से नाराज होकर सपा में चला गया। भाजपा दो हजार से अधिक वोटों से जीती।
कानपुर- अपने गढ़ में भी भाजपा को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। सालों से मेहनत कर रहे भाजपा नेताओं को किनारे कर नए चेहरे को टिकट दिया गया। बाहरी का ठप्पा लगा। भीतरघात हुआ। कांग्रेस प्रत्याशी के स्थानीय व ब्राह्मण होने का फायदा मिला। ब्राह्मणों के साथ मुस्लिम-यादव और एससी वोट गठबंधन के साथ चला गया। कांग्रेस 20 हजार से अधिक वोटों से जीती।
मेरठ- सामान्य सीट होने के बाद भी सपा ने यहां से दलित को मैदान में उतारा। जिससे बसपा का वोटर भी सपा में शिफ्ट हो गया। इसके साथ ही मुस्लिम वोटर भी सपा के साथ चला गया। अरुण गोविल पर बाहरी का ठप्पा लग गया। बसपा प्रत्याशी ने भाजपा के परंपरागत वोट काटे। इसके साथ ही भाजपा का वोटर बाहर नहीं निकला। सपा 10 हजार से अधिक वोटों से जीती।
फूलपुर- इस सीट पर तीन लाख से अधिक मुस्लिम वोटर और ढाई लाख से अधिक यादव वोटर निर्णायक साबित हुए। सपा चार हजार से अधिक वोटों से जीती।
सलेमपुर- यहां पर जातीय गोलबंदी का असर दिखा। यह संसदीय क्षेत्र देवरिया की दो और बलिया की तीन सीटों को मिलाकर बना है। बलिया की ये तीन सीटें हार का कारण बनीं। क्योंकि यहां पर राजभर वोटरों की संख्या अधिक है। भाजपा तीन हजार से अधिक वोटों से जीती।