1st Day Of Navratri: आज अश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो रहा है, नवरात्रि के पहले दिन दुर्गा के प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है,आज के दिन कलश स्थापना करके माँ को नारियल चुनरी चढाया जाता है,जिसमें पहले दिन कलश पूजा के साथ मां शैलपुत्री की विशेष रूप से पूजा की जाती है,आज से प्रारंभ हुई शारदीय नवरात्रि 05 अक्टूबर को विजयादशमी तक चलेगी, पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है.नवरात्रि के इन नौ दिनो में माँ दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपो की पूजा-अर्चना होती है
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नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा में ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:’ का विशेष रूप से जप करना चाहिए.माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप को शैलपुत्री कहा गया है,पर्वत राज हिमालय के घर माँ का जन्म होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री जाता है,शक्ति की साधना के लिए अत्यंत ही शुभ माने जाने वाले नवरात्रि पर्व के प्रथम दिन माँ का पूरे विधि-विधान से आज पूजा-अर्चना की जाएगी,योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करके यही से अपनी योग साधना की शुरुवात करते है
माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की कथा
नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाने वाली मां शैलपुत्री को हिमालाय की पुत्री माना जाता है. मान्यता है इससे पूर्व उनका जन्म राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में हुआ था. जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. जब देवी सती को इसके बारे में पता चला तो वो वहां पर बगैर निमंत्रण के ही पहुंच गईं. जहां पर महादेव के प्रति अपमान महसूस होने पर उन्होंने स्वयं को महायज्ञ में जलाकर भस्म कर लिया. जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने यज्ञ को ध्वंश करके सती को कंधे पर लेकर तीनों में विचरण करने लगे. इसके बाद भगवान विष्णु ने भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए सती के शरीर को चक्र से काटकर 51 भागों में विभक्त कर दिया. मान्यता है कि माता सती के टुकड़े जहां-जहां पर गिरे वे सभी शक्तिपीठ कहलाए. इसके बाद देवी सती ने शैलराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में दोबारा जन्म लिया. जिन्हें माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है
मां शैत्रपुत्री पूजन मंत्र
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्॥
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
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या
शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी।
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याणकारीनी