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घोसी उपचुनाव की लड़ाई प्रतिष्ठा पर आई, रणनीति के साथ कूटनीति का भी हो रहा प्रयोग

घोसी उपचुनाव को लेकर उत्तरप्रदेश के सियासी तापमान में गर्माहट साफ़ महसूस हो रही है। सियासी बिसात पर लड़ाई सिर्फ दो की है लेकिन समीकरण NDA  और इंडिया गठबंधन को लेकर बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं। इस उपचुनाव को लोकसभा चुनाव के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है।

By Rakesh 

Updated Date

लखनऊ। घोसी उपचुनाव को लेकर उत्तरप्रदेश के सियासी तापमान में गर्माहट साफ़ महसूस हो रही है। सियासी बिसात पर लड़ाई सिर्फ दो की है लेकिन समीकरण NDA  और इंडिया गठबंधन को लेकर बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं। इस उपचुनाव को लोकसभा चुनाव के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है।

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रणनीति के साथ कूटनीति देखी जा रही है। घोसी के उपचुनाव नतीजों पर काफी कुछ टिका हुआ है। काफी सवाल मन में हैं कि क्या घोसी उपचुनाव के नतीजों के बाद इंडिया गठबंधन का स्वरूप बिगड़ेगा ? क्या दीदी मायावती का मन बदलेगा ? घोसी उपचुनाव के नतीजों के बाद क्या इंडिया गठबंधन में होगा बदलाव सवाल यही बना हुआ है।  घोसी उपचुनाव के एक मॉकटेस्ट की तरह है लेकिन इसके नतीजे 2024 में होने वाले बोर्ड एग्जाम में काफी असर डालेंगे।

यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने घोसी की अपनी जनसभा में यह साफ़ कर दिया था कि यह चुनाव 2024 के लिए एक संदेश है। अखिलेश के भाषण से ये साफ हो गया है कि विपक्ष इसे INDIA बनाम NDA गठबंधन की तरह ही देख रहा है। अखिलेश की सभा में सभी दलों के झंडे दिखाई दिए थे। यहां यहां तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी अपना समर्थन दिया था।

घोसी की जमीन पर 2024 लोकसभा चुनावों की भी फसल बोई जा रही है। जहां सपा का मकसद घोसी उपचुनाव को जीत NDA को एक रियलिटी चेक देना है। वहीं बीजेपी का मकसद एक बड़ी जीत के साथ इंडिया गठबंधन को आईना दिखाना है। जमीन पर यह लड़ाई बहुत कांटे की होती जा रही है।

समाजवादी पार्टी अपने बेस वोट के साथ साथ दलित और सवर्णों के वोट बैंक में सेंधमारी करती नजर आ रही है तो वहीं बीजेपी अपने परंपरागत सवर्ण वोटों से दूर अति पिछड़ी जातियों में जबरदस्त तरीके से पकड़ बनाए हुए है। इसकी असल वजह बीजेपी से कहीं ज्यादा दारा सिंह चौहान, ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद जैसे नेताओं की तिकड़ी है, जो नेता तो अपनी जातियों के हैं लेकिन बीजेपी के पोस्टर बॉय बन चुके हैं।

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विपक्ष को उम्मीद है कि घोसी की जीत विपक्षी कुनबे को बढ़ाने का जरिया बन सकती है। गठबंधन बीएसपी को साथ लाने के लगातार प्रयास में है। मगर मायावती साफ़ कर चुकी हैं कि अकेले चुनाव लड़ेंगी। विपक्ष की दुनिया उम्मीदों पर कायम है कि घोसी का नतीजा पक्ष में आने से मायावती अपने फैसले पर विचार कर सकती है। अब घोसी का चुनाव इंडिया गठबंधन के लिए क्या गुल खिलाएगा। ये तो आने वाला वक़्त बताएगा।

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