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मायावती का बड़ा आरोप-राम मंदिर के सहारे सारे मुददे पीछे करने की कवायद

By Rakesh 

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लखनऊ। इंडिया बनाम भारत की सियासी लड़ाई में बसपा सुप्रीमो मायावती भी कूद पड़ी हैं। बकयादा मायावती ने इस बहाने ये साबित करने की पूरी कोशिश में दिखी कि वो इस विवाद से दूर सियासत का तीसरा केंद्र में हैं। यानि न कांग्रेस वाले गठबंधन इंडिया के साथ है न ही मोदी के चेहरे वाली बीजेपी के साथ।

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मायावती यूपी की सियासत का बड़ा चेहरा ऐसे में उसका तर्क सियासत को हवा दे रहा है। मायावती ने दो टूक कहा- कि “I.N.D.I.A. गठबंधन के खिलाफ NDA गठबंधन और भाजपा को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था। इस मामले में कानून बनाकर संबंधित नाम पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए था। लेकिन जानबूझकर इस पर राजनीति की जा रही है।मायावती को लगता है कि “देश के नाम को लेकर अपने संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का मौका भाजपा के NDA को खुद विपक्ष ने एक सोची समझी रणनीती के तहत दिया।

रणनीति के तहत अपने गठबंधन का नाम I.N.D.I.A. रखा। और इल्जाम ये कि यह सब सत्ता और विपक्ष अंदरूनी रूप से मिलकर किया हैं।मायावती ने सरकार की निंदा करते हुए संविधान को बदलने का आरोप लगा रही है यानि NDA vs I.N.D.I.A की लड़ाई अब भारत Vs I.N.D.I.A में बदलती हुई दिख रही है । I.N.D.I.A गठबंधन से खुद को दूर रखने वाली मायावती का आरोप सत्ता और विपक्ष दोनों एक है ।

मगर ऐसा नहीं है कि यूपी की सियासत यहीं थम रही है दरअरसल  राम मंदिर आंदोलन से सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने वाली बीजेपी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को अपना सबसे कारगर हथियार बनाया है। राजनीति में बीजेपी को जो मुकाम हासिल है, उसके पीछे राम मंदिर आंदोलन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। यही वजह है कि , हिंदू, हिंदुत्व, हिंदुस्तान बीजेपी की सियासत के केंद्र बिंदु हैं।

तभी तो सीएम योगी 24 से पहले एक बार फिर से राम मंदिर के मुद्दे के सहारे अधिकाश सारे मुददों के पीछे करने की कवायद शुरू कर चुके हैं तभी तो सीएम योगी ने प्रधानमंत्री को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए आमंत्रित किया। दोनों के बीच प्रदेश सरकार के कामकाज सहित अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई।

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श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 15 से 24 जनवरी 2024 के बीच प्रस्तावित है। बीजेपी के विचार और दर्शन की बात करें, तो पार्टी की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है जो प्राचीन भारतीय सभ्यता, संस्कृति और उसके मूल्यों से प्रेरणा लेते हुए महान विश्वशक्ति और विश्व गुरू के रूप में विश्व पटल पर स्थापित हो। यानि अपनी पुरातन संस्कृति पर गर्व करे और उसे अपनाते हुए आगे बढ़े।

सुशासन के साथ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धुरी पर ही बीजेपी को राजनीति घूमती है। अयोध्या में बन रहा भव्य और दिव्य राम मंदिर हो, काशी में बाबा विश्वनाथ कॉरीडोर, उज्जैन में महाकाल कॉरीडोर या फिर केदारनाथ, बदरीनाथ, जैसे तीर्थों की कायापलट, इसके माध्यम से जहां बीजेपी ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया है। वहीं, आम जनमानस के अंदर हिंदुत्व की अलख को भी जगाये रखने का प्रयास किया है।

यूं तो बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जन्म उसके जन्म के साथ ही हो गया था, लेकिन इसे धार मिली साल 2014 में जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी ने देश की सत्ता संभाली। बीते करीब साढ़े 9 साल में मोदी सरकार ने देश में प्रमुख मंदिरों के जीर्णोद्धार की कई योजनाएं शुरू कीं और तीर्थ स्थलों के विकास पर फोकस किया।

ना सिर्फ भारत के अंदर बल्कि, विदेशों में भी मंदिरों की स्थापना और जीर्णोद्धार को लेकर सरकार सजग रही। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते पीएम मोदी मंदिरों को लेकर आस्था जगजाहिर कर चुके थे लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय फलक पर भी इसकी झलक दिखी। सुशासन के साथ बीजेपी का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद किस तरह फल फूल रहा है, इसे कुछ यूं समझा जा सकता है।

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