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अभी भी जारी रहेगा तमिलनाडु में जल्लीकट्टू, नहीं लगी रोक

तमिलनाडु में एक खेल काफी प्रसिद्ध है जिसे वहां के लोग काफी मेहनत के साथ खेलते भी हैं। इसी के साथ इस खेल में जान जाने का डर भी होता है और यह खेल है जल्लीकट्टू।

By Avnish 

Updated Date

नई दिल्ली ।  तमिलनाडु में एक खेल काफी प्रसिद्ध है जिसे वहां के लोग काफी मेहनत के साथ खेलते भी हैं। इसी के साथ इस खेल में जान जाने का डर भी होता है और यह खेल है जल्लीकट्टू। इस खेल में सांडों को काबू में करना होता है और सिर्फ यही नहीं बल्कि कर्नाटक में भी एक खेल है कंबाला, जिसमें भैंसों की दौड़ होती है। जबकि महाराष्ट्र का खेल जिसमें बैलगाड़ी की दौड़ कराई जाती है।

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यह सारे खेल अपने-अपने राज्य में जहां काफी प्रसिद्ध हैं तो वहीं इसको लेकर काफी खतरा भी बना रहता है। इसीलिए इस खेल को बंद कराए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया गया था जिसके बाद से देश के सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला दे दिया है।  इन खेलों पर रोक नहीं लगेगी।

कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि तीनों राज्यों की तरफ से इस संबंध में कानून में किए गए संशोधन वैध हैं। कोर्ट ने इन खेलों को क्रूरता से जुड़ा हुआ नहीं बल्कि संस्कृति से जुड़ा हुआ बताया है। पांच जजों की बैंच ने फैसला देते हुए कहा है कि इन तीन राज्यों के खेल सांस्कृतिक विरासत से जुड़े हुए हैं।

जानवरों के साथ होती है क्रूरता

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट ने जब याचिका दाखिल की थी। तब कहा गया था कि इन खेलों के जरिए जानवारों के साथ क्रूरता की जाती है। जानकारी दे दें कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था।

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हालांकि राज्यों ने देश के सबसे बड़े फैसले के बाद इसमें संशोधन कर दिया था। तो वहीं कानून में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल की गई थी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इसको खारिज कर दिया था और कहा था कि यह खेल तमिलनाडु की सांस्कृतिक एक्टिविटी है, इसीलिए कोर्ट इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।

क्या है जल्लीकट्टू का खेल?

बताते चलें कि जल्लीकट्टू के खेल में खिलाड़ियों को खुले सांड को अपने काबू में करना होता है। जल्लीकट्टू का सिर्फ एक ही नाम नहीं है बल्कि इसे थझुवुथल और मनकुविरत्तु के नाम से भी जाना जाता है। इस खेल को पोंगल के त्योहार का हिस्सा माना जाता है, जिसमें भारी भीड़ के बीच में सांड को खुला छोड़ दिया जाता है और मैदान में खड़े खिलाड़ी सांड को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।

जानकारी दे दे कि तकरीबन 2500 सालों से बैल तमिलनाडु के लोगों के लिए यहां के आस्था और सांस्कृतिक का अहम हिस्सा माना जाता रहा है. यहां पर हर साल इस खेल को बड़े स्तर पर मनाया जाता है।

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