राजस्थान हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को दिशा निर्देश जारी करते हुए बाल विवाह को पूरी तरह से रोकने के लिए कहा है. कोर्ट ने अपने आदेश में पंच-सरपंच की जवाबदेही तय करने के लिए कहा है.कोर्ट ने ये भी कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 19 साल की लड़कियों में से 3.7 फीसदी महिलाएं मां बनी चुकी हैं या गर्भवती हैं।
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राजस्थान में बाल विवाह को रोकने के लिए कानूनी और सरकारी प्रयासों के बावजूद भी इसका अंत नहीं हो पा रहा है, राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य की सरकार को बाल विवाह के प्रतिबंध को सख्ती से प्रवर्तित करने के लिए जरूरी और गंभीर कदम उठाने के लिए निर्देश जारी किए हैं, यह नया निर्देश एक सामाजिक बदलाव की ओर महत्वपूर्ण कदम है, जो बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में है.
राजस्थान में कलंक बनी बाल विवाह की प्रथा पर लगाम के लिए हाईकोर्ट ने भजनलाल सरकार को गंभीर कदम उठाने के आदेश दिए है, कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि गांव-कस्बे के वार्ड स्तर तक के जनप्रतिनिधियों को जागरूक कर बाल विवाह रोकने में उनका साथ लिया जाए, साथ ही राज्य सरकार को चेतावनी दी कि बाल विवाह हुए तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार माना जाएगा.
कोर्ट ने कहा कि आदेश की कॉपी सभी मुख्य सचिव और जिला कलक्टरों तक भेजी जाएं, ताकि पंच-सरपंच सहित सभी बाल विवाह को रोकने में जुटें, न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश शुभा मेहता की खंडपीठ ने जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस एवं बचपन बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका पर बुधवार को यह आदेश दिया.
9 साल की 3.7% लड़कियां बनी मां
अदालत ने अपने आदेश में ये साफ किया है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान में 19 साल की लड़कियों में 3.7 प्रतिशत महिलाएं या तो मां बन चुकी हैं या फिर वे गर्भवती हैं. PIL में ये भी बताया गया है कि 20-24 साल की महिलाओं में 25.4 फीसदी लकड़ियों की शादी 18 साल से पहले ही हो जाती है. राजस्थान के शहरी क्षेत्र में ये प्रतिशत 15.1 है, जबकि ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा 28. 3 हो जाता है.