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उत्तराखंडः जोशीमठ भू-धंसाव पर आठ वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को किया सार्वजनिक

चमोली के जोशीमठ में पिछले दिनों हुए भू धंसाव ने जहां सरकार की चिंता बढ़ने का काम किया था। वहीं अब जो रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है उसे यह साफ हो गया है कि अगर निकट भविष्य में सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में नियम और प्लानिंग के तहत काम नहीं करती है तो फिर पौराणिक शहरों पर इसी प्रकार से भू धंसाव का खतरा बढ़ता रहेगा।

By Rakesh 

Updated Date

देहरादून। चमोली के जोशीमठ में पिछले दिनों हुए भू धंसाव ने जहां सरकार की चिंता बढ़ने का काम किया था। वहीं अब जो रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है उसे यह साफ हो गया है कि अगर निकट भविष्य में सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में नियम और प्लानिंग के तहत काम नहीं करती है तो फिर पौराणिक शहरों पर इसी प्रकार से भू धंसाव का खतरा बढ़ता रहेगा।

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जोशीमठ में आई दरारों का विस्तृत अध्ययन विभिन्न संस्थानों की टीमों ने किया था। जिनकी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी। लेकिन अब हाई कोर्ट के दबाव के बाद सरकार को यह सभी रिपोर्ट सार्वजनिक करनी पड़ी है। जिससे जनता को भी अब सच्चाई मालूम चल रही है की जोशीमठ में जमीन धंसने के पीछे के क्या कारण है।

सरकार ने आठ विभिन्न वैज्ञानिक संस्थाओं को भू-धंसाव और जोशीमठ की जड़ में निकल रहें पानी के कारणों को जानने के लिए मैदान में उतारा था। तमाम वैज्ञानिक संस्थानों ने बहुत पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार की सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने इसे दबाए रखा। इस मामले में अल्मोड़ा के सोशल एक्टिविस्ट ने याचिका दायर कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार को ऐसे मामलों की रिपोर्ट जल्द सामने रख लोगों से साझा करनी चाहिए।

इसके बाद उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। नैनीताल हाईकोर्ट की सख्ती के बाद आखिरकार राज्य सरकार को जोशीमठ भू-धंसाव पर आठ वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना पड़ा। 718 पन्नों की रिपोर्ट में मोरेन क्षेत्र (ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी) में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है, जिसके कारण वहां भू-धंसाव हो रहा है।

जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है,उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। इसी मोरेन के ऊपर जोशीमठ बसा है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में इस बात का प्रमुखता से जिक्र किया गया है कि जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है।

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यहां बोल्डर भी ग्लेशियर से लाई गई बजरी और मिट्टी से बने हैं। इनमें ज्वाइंट प्लेन हैं, जो इनके खिसकने का एक बड़ा कारण है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी मिट्टी में आंतरिक क्षरण के कारण संपूर्ण संरचना में अस्थिरता आ जाती है। इसके बाद पुन: समायोजन होता है, जिसके परिणामस्वरूप बोल्डर धंस रहे हैं।

जोशीमठ आपदा को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। जोशीमठ आपदा में सत्ता पक्ष जहां इस मामले में विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगा रहा है। तो विपक्ष इस मामले में सरकार के द्वारा जनता को गुमराह करने का आरोप लगा रहा है।

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