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यूपी के इस चर्चित बाहुबली नेता व सांसद को लेकर जब पुलिस खुद हो गई थी CONFUSE, जिसे मरा समझा वह चार महीने बाद जिंदा निकला

धनंजय सिंह उत्तर प्रदेश के चर्चित बाहुबली नेता हैं। वह 2009 में बसपा के जौनपुर सांसद भी रह चुके हैं। उन पर सबसे पहले 15 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा। सियासत की शुरुआत जौनपुर के TD COLLEGE से छात्र राजनीति के रूप में की। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति का सफर आगे बढ़ा।

By HO BUREAU 

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लखनऊ। धनंजय सिंह उत्तर प्रदेश के चर्चित बाहुबली नेता हैं। वह 2009 में बसपा के जौनपुर सांसद भी रह चुके हैं। उन पर सबसे पहले 15 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा। सियासत की शुरुआत जौनपुर के TD COLLEGE से छात्र राजनीति के रूप में की। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति का सफर आगे बढ़ा।

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लखनऊ विश्वविद्यालय में ही उनका परिचय बाहुबली छात्र नेता अभय सिंह से हुआ और यहीं से धनंजय भी विश्वविद्यालय की दबंग राजनीति का हिस्सा बन गए। कुछ ही सालों में लखनऊ के हसनगंज थाने में उन पर हत्याओं और सरकारी टेंडरों में वसूली से जुड़े आधा दर्जन मुक़दमे दर्ज हो गए। 1998 तक 50 हज़ार के इनामी बन चुके धनंजय सिंह पर हत्या और डकैती समेत 12 मुक़दमे दर्ज हो चुके थे। इसी दौरान 1998 में भदोही में हुआ पुलिस मुठभेड़ भी काफी चर्चा में रहा।

काफी चर्चा में रहा 1998 में भदोही में हुआ पुलिस मुठभेड़

दरअसल 17 अक्तूबर (1998) को पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि 50 हज़ार का इनामी वांटेड  धनंजय सिंह तीन अन्य लोगों के साथ भदोही-मिर्ज़ापुर रोड पर बने एक पेट्रोल पंप पर डकैती डालने वाला है। इस सूचना पर पुलिस ने पेट्रोल पंप पर छापा मारा। पुलिस और बदमाशों के बीच हुई मुठभेड़ में दोनों तरफ से कई राउंड गोलियां चलीं। जिसमें चार बदमाशों को पुलिस ने मार गिराया। मुठभेड़ में मारे गए 4 में से एक को पुलिस ने धनंजय सिंह बताकर उसे मृत घोषित कर दिया।

5 अक्टूबर 2002 को बनारस में धनंजय के क़ाफ़िले पर हुआ था हमला

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जबकि सच्चाई यह थी कि धनंजय जिंदा था। कई महीनों तक वह अपनी मौत की खबर पर चुप बैठा था। इस बीच फरवरी 1999 में जब वह पुलिस के सामने पेश हुआ तब भदोही फर्जी एनकाउंटर का राज खुला। धनंजय के ज़िंदा रहने के मामले में मानवाधिकार आयोग की जांच बैठी। फर्जी एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसकर्मियों पर केस भी दर्ज हुआ। 5 अक्टूबर 2002 को बनारस से गुज़र रहे धनंजय के क़ाफ़िले पर हमला हुआ।

टकसाल सिनेमा के सामने हुई इस मुठभेड़ में दिन-दहाड़े बनारस की सड़कों पर दोनों तरफ़ से गोलियां चलीं थीं। हमले में धनंजय के गनर और उनके सचिव समेत 4 लोग घायल हुए थे। तब जौनपुर के रारी के विधायक के तौर पर धनंजय ने इस मामले में अभय सिंह के खिलाफ मुक़दमा भी दर्ज करवाया था। 2002 में वह रारी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते तो 2007 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर।

2009 में बसपा के टिकट पर जौनपुर से चुने गए थे सांसद 

इस बीच 2008 में धनंजय बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हुए और 2009 में बसपा के टिकट पर जौनपुर से सांसद चुने गए।  2012 के चुनाव में धनंजय ने अपनी पूर्व पत्नी डॉक्टर जागृति सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़ा किया लेकिन वह हार गईं। फिर 2014 में लोकसभा और 2017 में विधानसभा में भी जौनपुर से हाथ आज़माया लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा।

सात साल की सजा होने पर धनंजय के राजनीतिक करियर पर संकट के बादल

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जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद से ही धनंजय सिंह मुश्किलों में घिर गए। जौनपुर की MP-MLA कोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल उनकी अपील पर सुनवाई टल गई। अब मामले की सुनवाई होली की छुट्टियों के बाद ही हो सकेगी। जौनपुर MP-MLA की विशेष अदालत ने पूर्व सांसद को नमामि गंगे के  प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण, रंगदारी मांगने, धमकाने व आपराधिक साजिश रचने के मामले में छह मार्च को सात साल की सजा सुनाई है।

सात साल की सजा के कारण वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। उनकी ओर से दाखिल अपील में सजा को रद्द किए जाने और फैसला आने तक जमानत पर रिहा किए जाने की गुहार लगाई गई है। सुनवाई टलने से धनंजय सिंह के राजनीतिक भविष्य पर काले बादल मंडराने लगे हैं। क्योंकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत दो साल से ज्यादा की सजा पाने वाले को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं है।

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