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भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर को क्यों कहा जाता है जननायक, सभी लोगों के बीच थे लोकप्रिय, जानें उनके जीवन से जुड़ी बातें

कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988)  भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर में हुआ था।

By Rakesh 

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पटना। कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 – 17 फरवरी 1988)  भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर में हुआ था।

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जननायक और CM होने के बावजूद अपना सादगीभरा लिबास नहीं छोड़ा

वह खुद अतिपिछड़े  नाई जाति से संबंधित होने के बावजूद बिहार में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरने में कामयाब रहे। आजीवन सादगी ही उनकी पहचान रही। जननायक और CM होने के बावजूद उन्होंने अपना सादगीभरा लिबास नहीं छोड़ा। केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित करने का ऐलान किया है। यह एलान ठीक उनकी जयंती 24 जनवरी से पहले ही किया गया है। वह पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे।

कर्पूरी ठाकुर भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। जिससे उन्हें 26 महीने तक जेल में रहना पड़ा। वह आजादी से पहले दो बार और आजादी के बाद 18 बार जेल गए। कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में पहला विधानसभा चुनाव जीता था। 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल गए। कर्पूरी ठाकुर समाज के कमजोर तबकों पर होने वाले जुल्म और अत्याचार की घटनाओं को लेकर सरकार को भी कठघरे में भी खड़ा कर देते थे। वह बिहार के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हैं।

CM बनने के बाद सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को दिया आरक्षण

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वह सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में CM बने थे। CM बनने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को आरक्षण दिया था। कर्पूरी ठाकुर पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक CM रहे। दूसरी बार जनता पार्टी की सरकार में जून 1977 से अप्रैल 1979 तक विहार के मुख्य मंत्री रहे।

विपरीत परिस्थितियों में भी शिष्टाचार और मर्यादा नहीं छोड़ी

बताया जाता है कि कर्पूरी ठाकुर की आवाज बहुत ही खनकदार और चुनौतीपूर्ण होती थी। लेकिन यह उसी हद तक सत्य, संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी। पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर को जब कोई गुमराह करने की कोशिश करता था तो वे जोर से झल्ला उठते थे। ऐसे मौकों पर वे कम ही बोल पाते थे, लेकिन बाकी सब उनकी आंखें कह देती थीं। फिर भी बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में भी शिष्टाचार और मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं का उन्होंने कभी भी उल्लंघन नहीं किया।

आजादी मिलने के साथ ही कांग्रेस सत्ता में आ गई। बिहार में उस समय कांग्रेस पर ऊंची जातियों का कब्जा था। ये ऊंची जातियां सत्ता में बने  रहने के लिए आपस में लड़ने लगीं। पार्टी के बजाय इन जातियों के नाम पर वोट बैंक बनने लगे। सन 1952 के प्रथम आम चुनाव के बाद कांग्रेस के भीतर की कुछ संख्या बहुल पिछड़ी जातियों ने भी अलग से एक गुट बना डाला, जिसका नाम रखा गया ‘त्रिवेणी संघ’। कुछ समय बाद त्रिवेणी संघ भी ढर्रे पर चला गया। इस तरह जल्द ही इसके बुरे नतीजे सामने आने लगे।

संख्याबल, बाहुबल और धनबल ही राजनीति और समाज को नियंत्रित करने लगा। राजनीतिक दलों का स्वरूप इनके मुताबिक बदलने लगा। निष्ठावान कार्यकर्ता औंधे मुंह गिरने लगे। ऐसी परिस्थिति में कर्पूरी ठाकुर ने न केवल इस परिस्थिति का डटकर सामना किया, बल्कि इन प्रवृत्तियों को प्रखर तरीके से उजागर भी किया। उस समय देश भर में कांग्रेस पार्टी में और भी कई तरह की बुराइयां पैदा हो चुकी थीं। इसलिए उसे सत्ता से हटाने के लिए सन 1967 के आम चुनाव में डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया गया।

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1977 में जनता पार्टी की विजय के बाद बिहार के मुख्यमंत्री बनें

कांग्रेस की हार के बाद बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। सत्ता में आम लोगों और पिछड़ों की भागीदारी बढ़ी। कर्पूरी उस सरकार में उप मुख्यमंत्री बने। उनका कद ऊंचा हो गया, उसे तब और ऊंचाई मिली जब वे 1977 में जनता पार्टी की विजय के बाद बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। दरअसल, 1977 के चुनाव में पहली बार राजनीतिक सत्ता पर पिछड़े वर्ग को निर्णायक बढ़त हासिल हुई थी। लेकिन प्रशासन-तंत्र पर उनका नियंत्रण नहीं था। इसलिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग जोर-शोर से की जाने लगी।

कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री की हैसियत से उक्त मांग को संविधान सम्मत मानकर एक फॉर्मूला निर्धारित किया और काफी विचार-विमर्श के बाद उसे लागू भी कर दिया। इस पर पक्ष और विपक्ष द्वारा विरोध जताया गया। अलग-अलग समूहों ने एक-दूसरे पर जातिवादी होने के आरोप भी लगाए। लेकिन कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व निरापद रहा। उनका कद और भी ऊंचा हो गया। इस तरह अपनी नीति और नीयत की वजह से वे सर्वसमाज के नेता यानी जननायक बन गए।

कर्पूरी जी  के प्रयास से करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलावः PM मोदी

भारतरत्न देने का ऐलान करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा कि आज कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है। मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो प्रयास किए, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आया। उनका संबंध नाई समाज यानि समाज के अति पिछड़े वर्ग से था।

अनेक चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने कई उपलब्धियों को हासिल किया और जीवनभर समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे। जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का पूरा जीवन सादगी और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा। वे अपनी अंतिम सांस तक सरल जीवनशैली और विनम्र स्वभाव के चलते आम लोगों से गहराई से जुड़े रहे। उनसे जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो उनकी सादगी की मिसाल हैं।

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