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Jharkhand : संकट में सीएम हेमंत सोरेन, चुनाव आयोग पहुंचा खदान लीज आवंटन मामला, मुख्य सचिव से रिपोर्ट तलब

मामले में राज्यपाल ने शुक्रवार को मुख्य सचिव से भी पूछा कि उनके द्वारा अभी तक दस्तावेज का प्रमाणीकरण क्यों नहीं किया गया?। जिसपर मुख्य सचिव ने राज्यपाल को बताया कि उनके पास आयोग का पत्र अभी तक नहीं पहुंचा है।

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

रांची, 17 अप्रैल। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन को पत्थर खदान लीज मिलने का मामला अब भारत निर्वाचन आयोग पहुंच गया है। चुनाव आयोग ने भी मामले पर कार्रवाई करते हुए लीज आवंटन से संबंधित दस्तावेज राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को प्रमाणीकरण करने को कहा है। आयोग जाना चाहता है कि वो दस्तावेज सही हैं या नहीं।

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सोरेन के खिलाफ निर्वाचन आयोग की कार्रवाई

जानकारी के मुताबिक बीजेपी नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और विधायक बसंत सोरेन के नाम पत्थर खदान लीज आवंटित होने की शिकायत किए जाने के बाद राज्यपाल रमेश बैस ने संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत दोनों के खिलाफ जरूरी कार्रवाई को लेकर भारत निर्वाचन आयोग से राय मांगी थी। इसके बाद ही भारत निर्वाचन आयोग ने ये कार्रवाई की।

अभी तक मुख्य सचिव ने दस्तावेज का प्रमाणीकरण नहीं भेजा

वहीं मुख्य सचिव की ओर से अभी तक दस्तावेज का प्रमाणीकरण कर चुनाव आयोग को नहीं भेजा गया है। राज्यपाल रमेश बैस ने शुक्रवार को मुख्य सचिव से ये भी पूछा कि उनकी ओर से अभी तक दस्तावेजों का प्रमाणीकरण क्यों नहीं किया गया?। जिसपर मुख्य सचिव ने राज्यपाल को बताया कि उनके पास आयोग का पत्र अभी तक नहीं पहुंचा है। इसपर राज्यपाल ने पत्र मिलने पर जल्द दस्तोवज का प्रमाणीकरण कर भारत निर्वाचन आयोग को भेजने को कहा है ताकि जल्द कार्रवाई की जा सके।

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बतादें कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुख्यमंत्री सोरेन के नाम अनगड़ा में पत्थर खदान आवंटित किए जाने का आरोप लगाया था। हालांकि मामला विवादित होने के बाद तब लीज को सरेंडर कर दिया गया था। इस मामले में झारखंड उच्च न्यायालय में भी याचिका दायर हुई है, जिसकी हाल ही में हुई सुनवाई में न्यायालय ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

क्या है अनुच्छेद 192 ?

संविधान के अनुच्छेद 192 किसी विधायक की सदस्यता खत्म किए जाने से संबंधित है। अगर किसी विधायक की सदस्यता समाप्त किए जाने का मामला होता है तो उसपर अंतिम स्वीकृति के लिए राज्यपाल को भेजा जाता है। राज्यपाल इस अनुच्छेद के तहत अनुमति देने से पहले भारत निर्वाचन आयोग से राय लेते हैं।

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