Booking.com

राज्य

  1. हिन्दी समाचार
  2. दिल्ली
  3. जानिए ‘कच्चातिवु द्वीप’ का इतिहास, जिस पर मोदी ने संसद में कांग्रेस को घेरा,  इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को GIFT में दे दिया था यह द्वीप

जानिए ‘कच्चातिवु द्वीप’ का इतिहास, जिस पर मोदी ने संसद में कांग्रेस को घेरा,  इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को GIFT में दे दिया था यह द्वीप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान ‘कच्चातिवु द्वीप’ पर कांग्रेस को घेरा। उन्होंने कांग्रेस पर मारत माता को तोड़ने का आरोप लगाया था।

By Rakesh 

Updated Date

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान ‘कच्चातिवु द्वीप’ पर कांग्रेस को घेरा। उन्होंने कांग्रेस पर मारत माता को तोड़ने का आरोप लगाया था। इस दौरान मोदी ने कच्चातिवु द्वीप की भी चर्चा की।

पढ़ें :- Lok Sabha Election 2024:  BJP ने जारी किया संकल्प पत्र, 70 साल से ऊपर के हर बुजुर्ग को मिलेगा 5 लाख तक का मुफ्त इलाज, जानें और क्या है खास

इस द्वीप को इंदिरा गांधी सरकार ने 49 साल पहले 1974 में श्रीलंका को दे दिया था। इंदिरा के इसी फैसले पर सवाल उठाते हुए मोदी ने कांग्रेस से पूछा कि मां भारती की मौत की कामना करने वालों को बताना चाहिए कि क्या यह द्वीप मां भारती का हिस्सा नहीं था।

कांग्रेस वालों से पूछिए कि कच्चातिवु द्वीप क्या है? यह कहां है? वह यहां इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर देश को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत माता की मृत्यु की कामना कर रहे हैं। और ये डीएमके वाले और उनके मुख्यमंत्री मुझे आज भी चिट्ठी लिखते हैं कि मोदी जी कच्चातिवु द्वीप को वापस लाइए।

ये कच्चातिवु है क्या? किसने किसी दूसरे देश को दिया था? कब दिया था? क्या ये द्वीप भारत माता नहीं थी। क्या वह हमारी मां भारती का अंग नहीं था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में इसे श्रीलंका को दे दिया गया। यह कांग्रेस का इतिहास है। मां भारती को तोड़ने का इतिहास।

आजादी के बाद इस द्वीप को भारत का हिस्सा माना गया

पढ़ें :- दिल्ली भाजपा का शिष्टमंडल पुलिस आयुक्त से मिला, केजरीवाल सरकार के मंत्रियों की सौंपी शिकायत, जांच की मांग

दरअसल यह द्वीप हिंद महासागर में भारत के दक्षिणी छोर पर है। यह भारत और श्रीलंका के बीच सामरिक महत्व का द्वीप है। करीब 285 एकड़ में फैले इस द्वीप पर भारत की श्रीलंका के साथ विवाद की स्थिति रही। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया।

यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। इसी बीच साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।

समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने किया था विरोध

तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। इस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने तीखा विरोध किया था।

इसके बाद इस फैसले से नाराज तमिलनाडु विधानसभा में साल 1991 में प्रस्ताव पारित कर इस द्वीप को वापस लेने की मांग की गई। इसके बाद साल 2008 में जयललिता इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गईं। सीएम बनने के बाद साल 2011 में एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया।

पढ़ें :- हरियाणाः सैकड़ों युवाओं ने थामा कांग्रेस का ‘हाथ’, पूर्वमंत्री ने पार्टी का पटका पहनाकर किया सभी का स्वागत, कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook, YouTube और Twitter पर फॉलो करे...
Booking.com
Booking.com
Booking.com
Booking.com