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प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में की मप्र की “हलमा परंपरा” की तारीफ, जानें क्या है हलमा परंपरा

मप्र की भील जनजाति ने "हलमा" का जल संरक्षण में किया इस्तेमाल: मोदी

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

भोपाल : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मासिक रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” में देशवासियों को संबोधित किया। उन्होंने गर्मी के समय में जल संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश की भील जनजाति की ऐतिहासिक परम्परा “हलमा” का जिक्र किया और इस परम्परा से जल संरक्षण के लिए प्रयासों की तारीफ की।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि जल से जुड़ा हर प्रयास हमारे कल से जुड़ा है। इसमें समाज की जिम्मेदारी होती है। इसके लिए सदियों से अलग-अलग समाज, अलग-अलग प्रयास लगातार करते आए हैं। जैसे कि “कच्छ के रण” एक जनजाति ‘मालधार’ जल संरक्षण के लिए “वृदास” नाम का तरीका इस्तेमाल करती है। इसके तहत छोटे कुएं बनाते हैं और उसके बचाव के लिए आसपास पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश की भील जनजाति ने अपनी एक ऐतिहासिल परम्परा “हलमा” को जल संरक्षण के लिए इस्तेमाल किया। इस परम्परा के अंतर्गत इस जनजाति के लोग पानी से जुड़ी समस्याओं का उपाय ढूंढने के लिए एक जगह पर एकत्रित होते हैं। हलमा परम्परा से मिले सुझावों की वजह से इस क्षेत्र में पानी का संकट कम हुआ है और भू-जल स्तर बढ़ रहा है।

क्या है हलमा परंपरा ?

मप्र की भील जनजाति की हलमा परंपरा में जब भी कोई संकट में होता है तो वह मदद के लिए अपने समाजजन को पुकारता है। इसके बाद सभी साथ मिलकर उसकी मदद करते हैं, जिसे हलमा कहते हैं। ऐसे में अब सभी समस्याओं के लिए समाज एकजुट होकर आगे आ जाता है। झाबुआ जिले के वे इलाके जहां जल समस्या रहती है, वहां समाजजन एकत्रित होकर जल संरचनाओं का निर्माण करते हैं, जिससे बारिश के समय पानी रोकने और भूजल स्तर बढ़ाने में मदद मिलती है।

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