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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित

गर्भपात के अधिकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है, और अविवाहित महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत गर्भपात कराने का अधिकार है।

By इंडिया वॉइस 

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Abortion Rights: गर्भपात के अधिकार के मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब सभी महिलाएं करा सकेंगी अबॉरशन। मैरिटल रेप के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप में ‘वैवाहिक रेप’ शामिल होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है कि पतियों ने अगर महिलाओं पर यौन हमला किया तो वह बलात्कार का रूप ले सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए विवाहित और अविवाहित महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात कराने का अधिकार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात कराने का अधिकार है. शीर्ष अदालत ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में बड़ा बदलाव किया है।

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सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक महिला की अगल-अलग परिस्थितियां होती हैं. आपदा की स्थिति में एक महिला बच्चा पैदा करने का फैसला जरूर कर सकती है. हालांकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आपातकालीन स्थिति में कोई भी महिला गर्भावस्था पर फैसला ले सकती है कि उसे वह बच्चा चाहिए या नहीं. यह महिलाओं के विशेष अधिकारों के अंतर्गत आता है.

इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के विशेषअधिकारों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई महिला की वैवाहिक स्थिति उसे अनचाहे गर्भ को धारण करने के लिए मजबूर कर रही है तो यह उचित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वैवाहिक स्थिति महिला को अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकारी से वंचित नहीं कर सकती है. शीर्ष कोर्ट ने अविवाहित महिलाओं के अधिकारों की बात भी कही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी महिला जो कि अविवाहित है उसे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत यह अधिकार है कि वह 24 हफ्तों के अंदर नियमों के तहत गर्भपात करा सकती है.

मैरिटल रेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. याचिका को खुशबू सैफी नाम की महिला ने दायर किया था जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के खंडित निर्णय को चुनौती दी गई थी. इस मामले में 11 मई को सुनवाई की गई थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में दो जजों ने अलग-अलग विचार प्रकट किए थे.

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