शेखावटी अंचल के चुरू लोकसभा क्षेत्र में राजनीति हमेशा गरमाई हुई नजर आती है,यहां मुद्दों की कोई विशेष अहमियत नहीं होती.बल्कि यहां के लोग नेता की जाति और पार्टी को ज्यादा तवज्जों देते हैं.यही वजह है कि साल 1999 से ही यह सीट बीजेपी का कब्जे में है.जानते है चुरु लोकसभा सीट का सियासी गणित.
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चूरू लोकसभा सीट
चूरू लोकसभा सीट पर विधानसभा चुनावों में काफी हलचल देखने को मिली थी.विधानसभा चुनाव में राजेंद्र राठौड़ की तारानगर सीट से हार होने के बाद राहुल कस्वां की बीजेपी से टिकट कटने का विवाद पूरे क्षेत्र में छाया हुआ है.2014 से इस सीट पर बीजेपी के राहुल कस्वां सांसद हैं.हालांकि वो अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.उनसे ठीक पहले तीन बार उनके पिता रामसिंह कस्वां भी यहां से जीत दर्ज कर चुके हैं.इस सीट के लिए रेलवे, रोजगार और फ्लोराइड युक्त पानी के अलावा उद्योगों की स्थापना एक अहम मुद्दा है.हर चुनाव में इन मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन वोट तो फिर भी जाति और पार्टी के नाम पर ही पड़ते हैं.इस सीट का गठन हनुमान गढ़ की नोहर, भद्रा सीट के अलावा चुरू जिले की सादुलपुर, तारा नगर, सरदार शहर, चुरू, रतनगढ़ और सुजानगढ़ को मिलाकर हुआ है.
चूरू लोकसभा सीट वर्ष 1977 में अस्तित्व में आई थी.यहां अब तक हुए 13 लोकसभा चुनावों में दो बार जनता पार्टी और चार बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.एक बार जनता दल और भाजपा छह बार चुनाव जीतने में कामयाब रही.पिछले 25 साल से यानी वर्ष 1999 से लेकर अब तक चूरू लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा रहा.कस्वां परिवार के जुड़े होने से भाजपा हमेशा बढत में रही लेकिन इस बार कस्वां परिवार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया.राहुल कस्वां इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.ऐसे में सबकी निगाहें चूरू लोकसभा सीट पर टिकी हुई है.
इस बार बीजेपी ने पैरा ओलंपिक देवेंद्र झाझड़िया को अपना प्रत्याशी चुना है.वही कांग्रेस ने राहुल कस्वां को चूरू से प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतारा है.पिछले 5 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी रहे कस्वां अब कांग्रेस के प्रत्याशी हैं.चूरू के दोनों प्रत्याशी एक ही समाज के हैं,ऐसे में यहां का मुकाबला काफी रोचक रहने वाला है.