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नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, धूमधाम से मना श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव

 माखन मिश्री के रस की फुहार,मोर पंख। बांसुरी। रंग बिरंगे  परिधान और पूजा के लिए सजे खूबसूरत थाल। ये नजारा है, हर घर मनाई जा रही जन्माष्टमी के उत्सव का। जिसमें पूरा देश रमा नज़र आ रहा हैं। और हो भी क्यों न आखिर मौका है कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव का। कृष्ण के बालरूप की मनोहारी झलक पाने का।और कान्हा की नटखट लीलांओं का आनंद लेने  का

By Rakesh 

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नई दिल्ली।  माखन मिश्री के रस की फुहार,मोर पंख। बांसुरी। रंग बिरंगे  परिधान और पूजा के लिए सजे खूबसूरत थाल। ये नजारा है, हर घर मनाई जा रही जन्माष्टमी के उत्सव का। जिसमें पूरा देश रमा नज़र आ रहा हैं। और हो भी क्यों न आखिर मौका है कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव का। कृष्ण के बालरूप की मनोहारी झलक पाने का।और कान्हा की नटखट लीलांओं का आनंद लेने  का।

भाद्रपद मास की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में जन्में भगवान श्रीकृष्ण के हर स्वरूप का बच्चा हो चाहे बड़ा हर कोई दीवाना है और यही वजह है कि जन्माष्टमी के उत्सव की धूम पूरे देश में दिखाई देती है। अलग- अलग राज्यो में जन्माष्टमी के त्यौहार का रूप भले ही अलग हो लेकिन भगवान के लिए भक्तों का अपार स्नेह और भक्तिभाव समान ही रहता है।

श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में जन्माष्टमी के दिन माखन मिश्री और मथुरा के पेड़ो की धूम रहती हैं। जहां तरह-तरह की मिठाइयों के साथ ही तुलसी दल और तुलसी का माला के बिना कान्हा की आराधना पूरी नहीं मानी जाती।

वृंदावन में जहां राधा नाम ही कृष्ण को पाने का एकमात्र साधन माना जाता है तो वही गुजरात में  जन्माष्टमी का त्यौहार रासलीला का प्रदर्शन कर मनाई जाती है साथ ही यहां भोग में विशेष तौर पर चूरमा,पंजीरी और मोहनथाल जैसी पांरपरिक मिठाइयों से भगवान का भोग तैयार किया जाता है।

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बंसी बजी जब तेरी मैं तेरी हो गई

भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय वृंदावन में तो जन्माष्टमी का नज़ारा देखते ही बनता है। क्योंकि जन्माष्टमी का ये विशेष उत्सव यहां एक या दो दिन नहीं बल्कि पूरे दस दिन मनाया जाता है जिसके लिए 10 दिन पूर्व ही वृंदावन में तैयारियां शुरू हो जाती है। भक्त की भीड़ के लिए पुलिस विभाग की ओर से विशेष इंतजाम इस मोके पर किए जाते है।

यहां के प्रत्येक मंदिक को नए फूलों से जन्माष्टमी के दिन सजाया जाता है और फूलों की सजावट और मंदिरों की छटा कुछ ऐसी होती है कि भक्तों के पास इस आनेंद को बताने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं। गोकुलाष्टमी-जहां पूरे देश में भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य के दिन पर जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है।

वहीं क्या आप जानते है कि गोकुल में इसे  जन्माष्टमी के एक दिन बाद गोकुलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि कानेहा के जन्म के एक दिन बाद वासुदेव उन्हे लेकर गोकुल पहुंचे थे इसी वजह से गोकुल में गोकुलाष्टमी मनाई जाती है। महारष्ट्र की दही हांडी की धूम तो देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक है जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग जन्माष्टमी के दिन पर यहां आते है और दही हाड़ी के कार्यक्रम के रूप में कृष्ण के नटखट स्वरूप का आनंद उठाते हैं।

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वीओ-5 वैसे तो ये त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत का प्रचलित त्यौहार है पर बंगाल में इसे नंदउत्सव और साउथ के राज्यो में इसे गोकुलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है ।

जहां बंगाल में पूरा दिन उपवास कर भगवान के जन्म के बाद उपवास खोलकर और भोग लगाकर इस त्यौहार को मनाते है तो वही साउथ में चावल की रंगोली और भगवान के पैरो के छोटे-2 निशान बना कर उनके आगमन का उत्सव मनाते हैं।

 

 

 

 

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