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बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई कर बुरे फंसे सुशासन बाबू, कहीं मंशा पर पानी न फेर दे वोटों की सियासत   

बिहार में गोपालगंज के जिलाधिकारी रहे जी कृष्णैया के हत्यारे व आजीवन कारावास की सजा काट रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन की समयपूर्व रिहाई सुशासन बाबू नीतीश कुमार के गले की हड्डी बन गई है। कहीं राजपूत बिरादरी के वोटों की सियासत आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने की उनकी मंशा पर पानी न फेर दे।

By Rajni 

Updated Date

नई दिल्ली। बिहार में गोपालगंज के जिलाधिकारी रहे जी कृष्णैया के हत्यारे व आजीवन कारावास की सजा काट रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन की समयपूर्व रिहाई सुशासन बाबू नीतीश कुमार के गले की हड्डी बन गई है। कहीं वोटों की सियासत आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने की उनकी मंशा पर पानी न फेर दे।

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बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह और अनंत सिंह के समर्थकों ने भी अपने-अपने नेताओं की रिहाई की मांग उठाई है। समर्थकों का कहना है कि राजपूत वोटों को प्रभावित करने की क्षमता उनके नेताओं में भी है। सीएम नीतीश कुमार आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने के लिए हर चुनावी हथकंडा अपना रहे हैं। बिहार में कुर्मी वोटों पर अपनी पकड़ कमजोर होते देखकर ही नीतीश कुमार ने आनंद मोहन पर अपनी कृपा बरसाई है।

बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह हत्या के मामले में जेल में बंद है। जबकि अनंत सिंह आर्मस एक्ट में जेल में बंद है। बिहार में राजपूत वोट करीब आठ प्रतिशत है। जो सियासी समीकरण को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इन्हीं वोटों को हथियाने के लिए नीतीश कुमार हर हथकंडा अपना रहे हैं।

सियासत ही न्यारी, जातिबिरादरी प्यारी

बिहार का बेड़ा गर्क हो जाए, इससे सुशासन बाबू पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। हत्या, लूट, अपहरण, छिनैती की घटनाएं आम हैं। जाति-बिरादरी की राजनीति कर नीतीश बाबू को तो बस कुर्सी चाहिए। काफी कम विधायक रहने के बावजूद इसी जोड़तोड़ के बल पर वह पांच बार सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। कभी राजद को पानी पी-पी कर गाली देने वाले नीतीश बाबू अब लालू के बेटे तेजस्वी यादव के साथ मिलकर सत्ता का सुख भोग रहे हैं।

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प्रभुनाथ और अनंत सिंह के समर्थक गुस्से में

प्रभुनाथ और अनंत के समर्थकों का कहना है कि जब जेल मैनुअल में बदलाव कर आनंद मोहन को रिहा किया जा सकता है तो उनके नेता को क्यों नहीं। समर्थकों ने दावा किया कि नीतीश कुमार को उनके नेताओं को नजरअंदाज करना आगामी लोकसभा चुनाव में काफी महंगा पड़ सकता है।

उनके समर्थक रिहाई की मांग को लेकर जगह-जगह पोस्टर और बैनर भी लगा रहे हैं। हालांकि आनंद मोहन करीब 15 साल से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर भी राजपूत वोटों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर

उधर, जी कृष्णैया की पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आठ मई को सुनवाई होगी। बिहार की सियासत की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है।

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