अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों को परिवारवाद को लेकर जमकर घेरने की कोशिश करते रहते हैं। 15 अगस्त को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद को लेकर विपक्षी दलों पर हमला बोला।
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देहरादून। अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों को परिवारवाद को लेकर जमकर घेरने की कोशिश करते रहते हैं। 15 अगस्त को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद को लेकर विपक्षी दलों पर हमला बोला। लेकिन उत्तराखंड में परिवारवाद की सच्चाई कुछ और ही सच्चाई बीजेपी बयां करती नजर आ रही है।
अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद को लेकर विपक्षी दलों पर हमला बोलते नजर आते हैं। लेकिन उत्तराखंड की सरजमीं पर खुद बीजेपी परिवारवाद के आरोपों में घिर गई है। अब कांग्रेस समेत बाकि विपक्ष दलों ने बीजेपी पर परिवारवाद का आरोप लगाया है।
क्योंकि मगनलाल शाह की पत्नी मुन्नी देवी को बीजेपी ने थराली उपचुनाव में उतारा।इसके बाद प्रकाश पंत की पत्नी चंद्र पंत को भी पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया। और दोनों ही जीतकर विधानसभा पहुंचीं।इसके बाद सुरेंद्र सिंह जीना के भाई महेश जीना को भी उपचुनाव लड़वाया। और वो भी जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2022 के विधानसभा चुनाव में हरबंस कपूर की पत्नी को भी बीजेपी ने भी टिकट दिया।
पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा। पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की बेटी रितु खंडूरी जो विधानसभा अध्यक्ष हैं। ये सारे नाम परिवारवाद के उदाहरण हैं। इसके अलावा भी कई नाम बीजेपी संगठन में ऐसे हैं। को परिवारवाद को दर्शाते हैं। और मौजूदा वक्त में बड़े पदों पर आसीन हैं। जिसमें पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत के बेटे शंशाक रावत। जो मौजूदा वक्त में युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं।
वहीं बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कालाढूंगी से विधायक बंशीधर भगत के बेटे विकास भगत बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता है। जबकि उमेश अग्रवाल के बेटे सिद्धार्थ अग्रवाल देहरादून महानगर के अध्यक्ष है। कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की बेटी नेहा जोशी भाजयुमो की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। और अब परिवारवाद को नया उदाहरण बागेश्वर उपचुनाव में देखने को मिला है। जहां स्वर्गीय कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को बीजेपी ने बागेश्वर से ही टिकट देकर उम्मीदवार बनाया है।
बीजेपी परिवारवाद का राग अलागपते हुए विपक्ष पर हर चुनाव में हमला बोलती है। लेकिन ये उदाहरण बीजेपी के आरोपों पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। जिसको लेकर कांग्रेस का कहना है कि उत्तराखंड में जितने भी उपचुनाव 2017 के बाद से हुए हैं।सभी उपचुनावों में बीजेपी ने परिवार के सदस्यों को ही टिकट दिए है। बीजेपी कांग्रेसी पर परिवारवाद का आरोप लगाती है।
लेकिन बीजेपी को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए उसके बाद बात करनी चाहिए। तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के नेता इस मामले में सफाई देते नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि सियासत क्या अपने हिसाब के परिवारवाद की परिभाषा गढ़ लेती है। परिवारवाद को लेकर अलग अलग परिभाषा आखिरकार कब तक।